एस.एस. शुक्ल का जन्म 1 सितंबर 1964 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक छोटे से गांव में एक धार्मिक और संस्कारशील ब्राह्मण परिवार में हुआ। बचपन से ही सादगी, परिश्रम और नैतिक मूल्यों की शिक्षा ने उनके जीवन को प्रेरित किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई, जहां उन्होंने बुनियादी ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद पास के जूनियर हाईस्कूल में कक्षा 6 से 8 तक की शिक्षा ग्रहण की और उच्च शिक्षा के लिए बस्ती के प्रतिष्ठित खैर इंटर कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने कक्षा 9 से 12 तक की पढ़ाई पूरी की। 1983 में गोरखपुर के सेंट एंड्रयूज कॉलेज से गणित में स्नातक (बीएससी) की डिग्री प्राप्त की।
स्नातक के बाद, एस.एस. शुक्ल ने संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में सफलता प्राप्त कर भारत सरकार की सेवा में कदम रखा। अपने सेवाकाल के दौरान उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया। अपने कर्तव्य और अनुशासन के प्रति समर्पण ने उन्हें उच्च आदर्शों पर कार्य करने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप वे संयुक्त सचिव के पद तक पहुंचे और 2023 में सेवा निवृत्त हुए।
एस.एस. शुक्ल के जीवन में उनके पिताजी का विशेष महत्व रहा है। उनके पिताजी को भगवान श्रीकृष्ण और उनकी दिव्य वाणी श्रीमद्भगवद्गीता में गहरी आस्था थी। 1983 में पिताजी ने उन्हें गीता का अध्ययन करने और सुनाने के लिए प्रेरित किया, जिससे उनके मन में गीता के प्रति रुचि और समर्पण की भावना विकसित हुई। जीवन के विभिन्न पड़ावों पर उन्हें महापुरुषों की टीकाओं का अध्ययन करने और उनके प्रवचनों का श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके पिताजी भी जीवनभर गीता के मर्म को आत्मसात करते रहे और अंतिम दिनों तक इसका श्रवण, मनन और चिंतन करते रहे। 2021 के उत्तरार्ध में एस.एस. शुक्ल को अपने पिताजी की सेवा करने और उनके सान्निध्य में गीता के गहरे मर्म को समझने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ।
अपने पिताजी की गीता के प्रति श्रद्धा और निष्ठा से प्रेरित होकर, एस.एस. शुक्ल ने गीता के कालजयी सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से अपनी पुस्तक “गीता सबके लिए, सब काल में” लिखने का संकल्प लिया। यह पुस्तक न केवल उनके दिवंगत पिताजी के प्रति श्रद्धांजलि है, बल्कि गीता के सार्वभौमिक और कालजयी सिद्धांतों को आज के समय में सरलता और स्पष्टता से प्रस्तुत करने का एक प्रयास है।
एस.एस. शुक्ल अपने इस प्रयास में अपनी विनम्रता, स्वार्थरहित प्रेम और सेवा भावना को प्रमुख मानते हैं। वे स्वीकार करते हैं कि उनके पास विशेष बौद्धिक क्षमता, व्याकरण का गहन ज्ञान या गहरा अध्ययन नहीं है जो इस महान कार्य को त्रुटिरहित बना सके। परंतु पिताजी के प्रति उनके प्रेम और गीता के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा दी है।
पाठकों से उनका निवेदन है कि यदि उनकी पुस्तक में कोई त्रुटि परिलक्षित हो तो इसे उनकी पवित्र भावना को समझते हुए एक बालवत प्रयास मानें और सहृदयता से स्वीकार करें।
एस.एस. शुक्ल का यह प्रयास केवल उनके पिताजी के प्रति सम्मान ही नहीं, बल्कि गीता के सिद्धांतों को सभी के लिए सुलभ और प्रासंगिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।